Raj kumar Sathi
Friday, 29 April 2011
तुमने चाहा ही नहीं वर्ना हालात बदल सकते थे
मेरी आँखों से निकले आंशु तेरी आँखों से निकल सकते थे,
तुम तो ठहरे रहे झील के पानी की तरह,
दरिया बन कर बहते तो सागर बन सकते थे.
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